Breaking

Friday, September 1, 2017

जज्बात शायरी by Jot Chahal


1.
हर रोज निकलता हूँ साथ लेकर
जज्बातों का कारवाँ,
मिल जाए मंजिल मुझे न जाने वो
सहर क्यों नहीं होती।
2.
न मिलने की ये मजबूरियाँ
बना कर रखो,
ये नजदीकियां कहीं
खतरनाक साबित न हों
बेहतर है थोड़ी दूरियां
बना कर रखो।
3.
जिंदगी के हर तजुर्बे ने
एक नया सबक सिखाया है,
हमने जब-जब शराफत दिखाई
ज़माने ने तमाशा बनाया है।
4.
जो अपनी असलियत
फरेब के नकाब में छिपा लेता है,
ये वक़्त एक दिन उसकी
औकात दिखा देता है।
5.
जो शख्स अपनी मजबूरियों से
जुदा नहीं होता,
उस शख्स का इस दुनिया में
कोई खुदा नहीं होता।
6.
कर ले जितने सितम करने हैं
ए जिंदगी
जब तक ये जाँ बाकी है,
न हार मानूंगा मैं कभी
क्योंकि मेरी कोशिशों की अभी
इन्तेहाँ बाकी है।
7.
सहला कर यूँ ही
कुरेद देता हूँ कई मर्तबा,
ये जख्म ही तो उसकी
आखरी निशानी बची है।
8.
इन खामोशियों को
अपनी आवाज न बनने दो,
सन्नाटों का शोर अक्सर
भावनाओं को बहरा कर देता है।
9.
न वो हमारे हुए
न हम उन्हीं के हो सके,
बस चाहतों का सिलसिला
उम्र भर चलता रहा।
10.
वो अक्सर धोखा खा जाता है
जो जिंदगी को शतरंज की बिसात समझ लेता है,
बोलना उस वक़्त मजबूरी बन जाती है
जब ख़ामोशी को कोई औकात समझ लेता है।
11.
वक़्त जब अपनी ताकत से
लोगों का गुरूर तोड़ जाता है,
तन्हाई इस कदर छा जाती है कि
साया भी साथ छोड़ छोड़ जाता है।
12.
न आबाद ही होने दिया
न बर्बाद ही होने दिया,
बड़े मतलबी निकले लोग
इस ज़माने के
न कैद में ही रखा
न आजाद ही होने दिया।
13.
इलाज-ए-इश्क में
लुट गया सब कुछ मेरा
तो पता चला कि
ये बीमारी लाइलाज है।
14.
तेरी कमी खलती है मुझे
ये खालीपन तड़पाता है,
बस यूँ ही यादें दिल में समेटे
ये वक़्त गुजरता जाता है।
15.
न खुशियाँ मिलती हैं जिंदगी में
न कोई ख्वाहिश पूरी होती है,
बरबादियों ने बसा रखा है घर मेरे नसीब में
और तकदीर कहीं तन्हाई में सोती है।


No comments: