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Sunday, February 11, 2018

Latest Story on Fear (Snake Phobia) in Hindi 2018


भय 

हम मनुष्य कभी-कभी कितने बेकार के डर पाल लेते हैं। कभी जानकारी और जागरूकता की कमी के चलते तो कभी कुछ खो देने की आशंका के चलते। मैंने गहरे चिंतन की मुद्रा में कहा। 

एक लम्बी यात्रा रही है मनुष्य के विकास की। आनुवंशिकता, परिवेश, परिवार, मूल प्रकृति, परस्पर प्रभाव...बहुत सी चीजें हैं। मनुष्य अपने और दूसरों के लिए जितना अच्छा हो सकता है, वह उतना ही बुरा भी हो सकता है। उसने बात आगे बढ़ाते हुए कहा। 

हाँ, यह विकल्प बस मनुष्य के ही पास है। 

मेरा एक सहपाठी था। उसे रास्ते में चलते हुए हमेशा साँप के काट खाने का भय रहता था। उसे लगता था कि अभी अचानक कहीं से सांप आ जाएगा और उसे काट खायेगा। उसके इस डर के चलते कुछ लोग उसका मजाक भी उड़ाते थे। 

इस तरह मजाक उड़ाना तो गलत है न! हम सभी मनुष्यों के जीवन में न्यूनाधिक कोई न कोई भय विद्यमान रहते ही हैं। हाँ, यह अतिरिक्त रूप से पाला-पोसा गया भय था। क्या उसे या उसके किसी परिचित को बचपन या कभी और किसी सांप ने काटा था? 

हाँ, उसके साथ बचपन में सर्पदंश की घटना हुई थी और तभी से यह डर उसके साथ हर रास्ते (विशेष रूप से सुनसान) पर चलता था। 

अवचेतन में बैठे कुछ डर बचपन की किसी घटना या दृश्य से संबंधित ही होते हैं। तुमने उसे समझाया नहीं कि इस तरह डरना फ़िजूल है? इस तरह तो वह हर रोज उस घटना को जी रहा है। 

मैंने समझाया था। उसने कहा कि वह सब कोशिशें कर चुका है, लेकिन पूरी तरह इस डर को काबू नहीं कर पाता। 

शायद उसे किसी जानकार के परामर्श की जरुरत है। बाकी मुझे लगता है उसे अपने मन में सांप के साथ थोड़ा सहज-सतर्क रिश्ता कायम करने की कोशिश करनी चाहिए कि बेवजह काटना उसका शौक नहीं। वह खुद भी तो भय और असुरक्षा के चलते ही काटता है। वह हमारा शत्रु नहीं है। हम मनुष्यों के पास जरूर यह विकल्प होता है कि हम अपने भयों से छुटकारा पा सकते हैं। कम से कम अतिरिक्त भयों से तो पा ही सकते हैं। 

अच्छा जैसे तुम्हें तो सांप से डर लगता ही नहीं। उसने हंसकर मुझे चिढ़ाते हुए कहा। 

मैंने कहा तो सबके अपने-अपने न्यूनाधिक डर रहते हैं। मेरे भी कुछ थे और कुछ हैं। सांप से भी लगता है। पर इस तरह साथ नहीं रहता। सांप के बच्चों से तो नहीं लगता। कभी-कभी बारिश के दिनों में घर में भी आ जाते थे और तब मैं उन्हें बाहर छोड़ आती थी। पर एक बार माँ ने बाहर सड़क पर थोड़ा दूर एक बड़े से सांप को बहुत तेज रेंगते हुए देखा था और अंदर आकर मुझे बताया था। मैं उत्सुकता से उसे देखने बाहर आयी तब तक वह सांप हमारे घर की सीढ़ियों के बिल्कुल पास से गुजर रहा था। वह बहुत लम्बा, मोटा और इतने गहरे काले रंग का था कि उसे देखते ही मन में डर की एक लहर कौंध पड़ी। मैंने जरा सा ध्यान हटाया जितने में वह जाने कहाँ चला गया। फिर कुछ देर में मैंने बाहर की फाटक खोली तो अचानक एक लहराता हुआ फन मेरे करीब आया। वह फाटक से सटी दीवार में बनी ताक में बैठा था। मैं तुरंत पीछे हट गयी और फाटक बंद कर दी। कुछ देर बाद वह चला गया। पर बाद में मैं यह सोच रही थी कि शुरू में जब मैंने उसे सड़क पर घर के पास से गुजरते हुए देखा था तब मुझमें डर की लहर क्यों कौंधी थी? जबकि वह तो उस समय मेरे साथ कुछ कर भी नहीं रहा था। कंडीशनिंग ही सही पर यह अनावश्यक भय है न! और तब मैंने सोचा था कि अगली बार मैंने सांप को सिर्फ गुजरते देखा तो कोशिश करुँगी कि डरूं नहीं। 

हाँ, बहादुर हो तुम तो। फिर थोड़ी देर चुप रहकर वह बोला - अरे! तुम्हारे पीछे साँप! 

मैंने थोड़ा चौंक कर पीछे देखा। और फिर आगे मुड़ी तो उसे हँसता हुआ देख मुंह बनाकर उसके साथ खिलखिलाकर हंस पड़ी। 

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