ज़माना पेश हम से ढंग से आए-
ज़माने को भी कोई तो बताए!
यही सोचे हैं बैठे सर झुकाए
वो देखें आज क्या तोहमत लगाए
उन्होंने कह दिया अच्छा सुख़न है
मेरे अश'आर ख़ुश-ख़ुश लौट आए
मुहब्बत की भी कोई उम्र तय है?
अगर अब है तो फिर आए-न-आए!
झरे दिन जैसे मुट्ठी रेत की, या
उमर-मछली फिसल दरिया में जाए
………उमर-मछ्ली फिसल दरिया में जाए! |
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