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Sunday, December 16, 2018

Attut Rista अटूट रिश्ता Hindi Story by LuvShyari 2019




एम एस सी फिजिक्स में पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान मिलने पर मोहन के सपने आकाश छूने लगे. अमरीका के विषय में पढ़ते हुए और अपने अमरीका गए कुछ मित्रो की बातों से मोहन की दृष्टि में अमरीका लक्ष्य- पूर्ति का देश था. अपने पिता के कट्टर धार्मिक विचारों के विपरीत मोहन एक खुले विचारों वाला नवयुवक था. यूनीवर्सिटी तथा कई वैज्ञानिक सेमिनारों में भाग लेने के कारण मोहन की दृष्टि में देशी-विदेशी विभिन्न जाति-धर्म वालों के लिए समान सम्मान की भावना थी. मोहन के परिणाम के आधार पर उसके विभागाध्यक्ष ने भी मोहन को अमरीका में शोध- कार्य करने जाने की सलाह दी थी.
मोहन ने जब पिता के समक्ष अमरीका जाने का प्रस्ताव रखा तो वह चौंक गए. मांसाहारी और ईसा मसीह के पुजारियों वाले देश में उनका बेटा क्या अपने धर्म को भुला न देगाबाईस वर्षों तक उसे दी गई उनकी धार्मिक शिक्षा व्यर्थ ना हो जाए. नहींवह ऐसा जोखिम नहीं ले सकते. अपने देश में क्या कुछ नहीं हैमोहन के बार-बार विश्वास दिलानेविनती करने और कुछ लोगों के समझाने पर दिल पर पत्थर रख कर उन्होंने बेटे से वायदे करवा कर उसे अमरीका जाने की इजाज़त दी थी. काश वह जान पाते अमरीका में उनके बेटे को फूलों की सेज नहीं मिली थी. वह नहीं जानते थे, पढाई के खर्चे की भारी फीस के साथ अमरीका में रहने के लिए बिना आर्थिक सहायता के जीवन आसान नहीं होता.
अमरीका पहुंचे मोहन को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. यूनीवर्सिटी में देर से एप्लीकेशन भेजने के कारण मोहन को यूनीवर्सिटी से आर्थिक सहायता तथा हॉस्टेल में कमरा नहीं मिल सकापर उसके रिज़ल्ट के आधार पर एक सेमेस्टर के बाद आर्थिक सहायता का आश्वासन दिया गया था. अमरीका में अधिक पैसों के साथ बेटा बिगड़ ना जाए इसलिए पंडित रामचरण ने उसे सीमित मात्रा में पैसे देकर उतने पैसों में ही गुज़ारा करने को कहा था. उतने सीमित पैसों में अलग अपार्टमेन्ट ले पाना कठिन था. सौभाग्यवश लीना नाम की एक अनाथ अमरीकी शोधार्थी युवती भी आर्थिक समस्याओं से परेशान थी. लीना भारतीय संस्कृति और हिन्दी भाषा पर शोध-कार्य कर रही थी. लीना के एक मित्र रॉबिन ने मोहन की समस्या जान कर लीना के साथ अपार्टमेंट शेयर करने की जब सलाह दी तो मोहन बौखला सा गया.
“क्या एक लड़की के साथ अपार्टमेंट शेयर करनाइसकी तो कल्पना भी असंभव है. तुम हमारी भारतीय संस्कृति के विषय में नहीं जानते, विवाह के पहले लड़के और लड़की का मिलना तो दूरबात करना भी निषिद्ध होता हैमेरे परिवार वाले इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे. मेरे पिता बहुत पुराने और कट्टर विचारों वाले व्यक्ति हैं.”मोहन ने अपनी समस्या बताई थी.
 “अब तुम्हें यह समझना ज़रूरी है कि तुम भारत में नहीं अमरीका में हो. यहाँ लड़के और लड़की का अपार्टमेन्ट ही नहींरूम शेयर करना भी सामान्य बात है. कॉलेजों में तो दोनों के बाथरूम्स भी कॉमन होते हैं. वैसे दोनों के साथ रहने से तुम्हें जिस गलती का भय हैअपार्टमेंट शेयर करने से वैसा होना ज़रूरी नहीं होता. यह तो तुम दोनों की समझदारी और अपने आत्मविश्वास पर निर्भर है. लीना बहुत ही समझदार और सिंपल लड़की है. उस पर मुझे पूरा विश्वास है.” रॉबिन ने समझाया.
बहुत सोचने के बाद मोहन लीना से मिलने को राजी होगया था.यूनीवर्सिटी- कैम्पस में दोनों का मिलना निश्चित हुआ था. सादे गुलाबी सलवार सूट में लीना को देख कर उसके भारतीय होने का भ्रम होता. गुलाबी परिधान उसकी गुलाबी रंगत से होड़ लेता लग रहा था. आकर्षक लीना के चेहरे पर मासूमियत और उदासी की हलकी सी छाया थी. मोहन को देख जब उसने हाथ जोड़ कर नमस्ते की तो मोहन चौंक गया. प्रत्युत्तर में वह कुछ भी नहीं कह सका.
मेरे पापा अमेरिकन एम्बैसी में काम करते थे. कुछ वर्षों के लिए उनकी पोस्टिंग भारत में .हुई थी. ग्यारह-बारह वर्ष की आयु तक मै भारत में रही थी. वहां के बच्चों के साथ खेलते और बातें करते हुए मै भी अच्छी हिन्दी बोलना सीख गई थी. दुर्भाग्यवश पापा की एक दुर्घटना में इंडिया में मृत्यु होगईमेरी माँ पहले ही  हमेशा के लिए दुनिया छोड़ कर जा चुकी थीं,” अचानक लीना उदास हो गईआँखें नम थीं.
“भारत में रहते हुए मेरे बहुत सुखद अनुभव थे. वहां मेरा कोई रिश्तेदार नहीं थापर मोहल्ले-पड़ोस में रहने वाली स्त्रियों से मुझे नानी-दादीचाची –ताई जैसा जो प्यार मिलाउसे कभी नहीं भूल सकती. अपने मित्रो के साथ मिल कर वहां के त्योहार और जन्म-दिन जैसे अवसर मनाती थी. मेरा जन्म-दिन भी खुशी के साथ मनाया जाता. सच तो यह है कि उनके बीच मै अपनी माँ की कमी भूल गई थी.”लीना यादों में खो सी गई थी.
“यह् भ्रामक धारणा हैमेरे विचार में तो हिंदी सरल और प्रेम की भाषा है. जब मै अमरीका आरही थी तब मेरे मित्रो ने मुझे हिंदी कहानियों की कुछ पुस्तकें दी थीं. अमरीका में उन पुस्तकों को पढती और अपने मित्रो को याद करती. मै हिंदी कभी नहीं भूली. आपको जान कर खुशी होगी कॉलेज में मैने हिंदी को मुख्य विषय के रूप में लिया और उसमें सर्वोच्च अंक मिले.”लीना के सुन्दर मुख पर खुशी थी.
“आपकी बातें सुन कर प्रसन्नता हैपर आपको बताना चाहूंगामेरा शाकाहारी परिवार सनातन धर्म में विश्वास रखता है. हमारे यहाँ हिंदू देवी-देवताओं की श्रद्धा पूर्वक पूजा की जाती है. आपका धर्म और आचार-विचार अलग होंगे. मेरे लिए मांस –मदिरा जैसी वस्तुएं सर्वथा निषिद्ध हैं. यदि हमारा एक ही किचेन होगा तो शायद मुझे कुछ कठिनाई हो सकती है.”मोहन ने सच्चाई से अपनी समस्या बताई थी.
“जी हाँइंडिया में मेरे कई मित्रो के परिवार आपके परिवार जैसे ही थे. मुझे उनके साथ कभी कोई समस्या नहीं आई. अब आपको सच बताऊंअपने घर की अपेक्षा मुझे सुरमा नानी का शाकाहारी भोजन और उनकी पूजा का प्रसाद अच्छा लगता था. कभी-कभी उनके साथ मन्दिर भी जाती थी. यहाँ आकर शाकाहारी भोजन ही लेती हूँउसकी कुकिंग भी आसान है और स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है. विश्वास हैमेरी कुकिंग से आपको समस्या नहीं होगी.”लीना के चेहरे पर मुस्कान थी.
अपार्टमेन्ट की समस्या का हल हो जाने से मोहन के मन का भार उतर गयापर क्या उसके पिता इस समझौते को स्वीकार कर सकेंगेहिंदू धर्म के प्रगांड पंडितधार्मिक विधि-विधानों का बेहद कडाई के साथ पालन करने वालेक्या उसकी समस्या समझ सकेंगेसबसे पहले एक अविवाहित युवती के साथ एक ही घर में रहनाउस पर अलग जाति और धर्म वाली विधर्मी के साथ एक ही रसोई में भोजन पकानाउनकी दृष्टि में तो बेटा धर्म भ्रष्ट हो जाएगा. इसी सोच-विचार में मोहन पूरी रात सो नहीं सका. उसे लीना में किसी आपत्तिजनक बात का अनुभव नहीं हुआ था. फ़ैशनेबल मेकअप पोते तितली जैसी लड़कियों से बिलकुल अलग वह अभावों में पली सीधी-सादी लड़की है. अपनी समस्या रॉबिन को बताने पर रॉबिन ने उसे सलाह दी-
मोहन जानता था उसके पिता अभी क्या अमरीका में कभी पैर भी नहीं रक्खेंगेउनकी दृष्टि में तो यह अपवित्र देश है. अंतत: उसने लीना के साथ रहने का निर्णय ले ही लिया. रॉबिन ठीक कहता हैउसे अपने पर पूरा विश्वास हैकिसी तरह की भूल होने का प्रश्न ही नहीं उठता. पिता से सच छिपाना उसे अच्छा नहीं लग रहा थापर परिस्थिति से समझौता करने में ही समझदारी थी.
निश्चित दिन दोनों अपने सामान के साथ अपार्टमेन्ट में रहने आगए. लीना के साथ एक सूटकेस और स्लीपिंग बैग था. मोहन के पास दो भारी सूटकेसों में भारत से आने वाले मध्यम वर्ग के विद्यार्थियों की  तरह कपड़ों के अलावा खाने-पीने का कुछ सामान और ओढने-बिछाने की चादर आदि थीं. अपने अभ्यस्त हाथो से लीना ने शीघ्र ही अपने कपडे अलमारी में रख लिएपर मोहन अपना सूटकेस खोल कर परेशान था. मुश्किल से एक मोटी दरी जैसा बिछौना और राजस्थानी रजाई निकाल सका. कपडे निकालने के क्रम में सब सब उलट-पुलट हो गया. माँ के लाड़ले बेटे ने ये सब काम किए ही कब थेडिनर का समय हो जाने के कारण भूख भी ज़ोरों से लग रही थी. अचानक याद आया माँ ने आते समय मठरी-लड्डू जैसे उसकी पसंद की व्यंजन और थोड़ा आटा-दाल चावल तक सूटकेस में रख दिया था. सौभाग्यवश उसे कस्टम में पकड़ा नहीं जा सका. अपना काम समाप्त कर लीना एक पुस्तक पढ़ रही थी.
मोहन ने उत्साह से माँ द्वारा पोटलियों में बांधा गया सामान निकलना शुरू कर दिया. एक स्टील के बर्तन में माँ घी रखना भी नहीं भूली थी. माँ की याद ने मोहन की आँखों में आंसू ला दिएलीना के आते ही आँखें पोंछ डालीं. काश माँ को बता पाता अमरीका के छोटे घरों में भी सारी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध होती हैं.अचानक मोहन की दृष्टि घड़ी पर पड़ीअभी खाना बनाने में काफी देर हो जाएगी.
मोहन का मन हँसी से हल्का हो गया. लीना के साथ के कारण पिछले सात दिनों का अवसाद जैसे कम हो गया. मजबूरी में शुरू के सात दिन एक सस्ती जगह में अजीब से लोगों के बीच रहते हुए उसे लगा थावह तुरंत वापिस भारत लौट जाए. एक-दो दिनों में ही लीना जैसे अजनबी नहीं लग रही थी. शायद इसका कारण उसके साथ हिंदी में अपने भारत के बारे में की गई बातें थीं. ठंडे मौसम में गरम चाय के साथ जैम लगी ब्रेड भी अच्छी लग रही थी.”
“तुम्हें मेरे किस व्यवहार से लगा कि तुम्हारे साथ मै असुविधा में रह रहा हूँ?अगर तुम ना होतीं तो ब्रेड और सैंडविच खाकर शायद अब तक इंडिया वापिस जाने की बात सोच रहा होता. तुमने देख लिया लाख कोशिशों के बावजूद मै खाना पकाने की ए बी सी डी भी नहीं सीख सका हूँ. अब नए अपार्टमेन्ट में हम दोनों जल्दी ही शिफ्ट कर लेंगे.” मोहन ने खुशी और विश्वास से कहा.
मोहन के घर में तूफ़ान आगया. पंडित राम शरण पर वज्रपात होगया. सिर धुनते उस दिन को कोस रहे थे जब बेटे की बात मान उसे सात समंदर पार भेजा था. उनके तो जीवन भर का पुन्य कुल कलंकी बेटे ने मिट्टी में मिला दिया. अब मोहन उनका बेटा नही रहा बल्कि उस अपवित्र और पापी से उनका कोई संबंध नहीं रह सकता. फोन उठा कर मोहन को जी भर के कोसा था. साथ ही चेतावनी दी थी-
पिता के विष भरे कुवचन सुन मोहन स्तब्ध रह गया. कुछ समझाने का हर प्रयास व्यर्थ गया. पिता के शब्दों की सच्चाई से वह परिचित था. अगर वह जबरन गया तो वह अपनी जान दे देंगे. उसके पिता उसकी बात सुनने को तैयार ही नहीं थे. मोहन का दुःख उसके चेहरे पर लिखा हुआ था. अब मोहन के पास घर में फोन करने का भी साधन नहीं रह गया था. फोन करने पर उसका फोन काट दिया जाता. अब केवल कुछेक मित्रो और संबंधियों के द्वारा ही माता-पिता की कुशलता जान पाता. सब जान कर लीना अपने को अपराधी मान रही थी. उसके अपार्टमेंट छोड़ कर जाने की बात ने मोहन  को चैतन्य किया था. नहीं इसमें लीना की कोई गलती नहीं थीयह तो उस समय दोनों की विवशता थी.
अंतिम प्रयास के रूप में मोहन ने पिता के नाम अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए क्षमा मांगी थी. पिता को विश्वास दिलाया थाउसने कोई पाप नहीं किया हैयह उसकी विवशता थी. लीना एक अच्छी और भारतीय संस्कृति तथा हिंदी भाषा की शोधार्थी है. क्षमा माँगते हुए उसने पिता से घर वापिसी की प्रार्थना की थी. उत्तर में उसके पत्र की फटी हुई चिन्दियाँ मिली थीं. उसके बाद भी मोहन की क्षमा की विनती पर राम शरण पर कोई प्रभाव नहीं पडा. माँ से बात करने का प्रयास भी सफल नही हो सका.
अंतत: मोहन ने अपना शोध-कार्य पूरा करने का निर्णय लिया था. इस निर्णय में लीना ने उसे साहस दे कर सहायता की थी. समय बीतने लगा. अचानक एक दिन लीना सीढियों से गिर गई. उसके माथे से रक्त की धार बह निकली. मोहन घबरा गयाअगर लीना को कुछ हो गया तो वह अकेला कैसे रह सकेगा. उस दिन पहली बार मोहन समझ सका लीना अब उसकी मित्र से कुछ अधिक अपनी हो गई थी. क्या लीना के मन में भी उसके लिए ऐसी ही भावनाएं हैं ,यह जानना आवश्यक था. उस पर वह किसी तरह का दबाव नहीं डालेगापर मोहन अपने मन का सत्य पहिचान चुका था.उसे लीना से प्यार हो गया था. हॉस्पिटल से घर वापिस आई लीना और अपने विषय में मोहन निर्णय ले चुका था. लीना से स्पष्ट शब्दों में कहा था-
एक सप्ताह के बाद मन्दिर में कुछ साथियों की उपस्थिति में मोहन और लीना विवाह-बंधन में बंध गए.मोहन ने फिर कोशिश की थी. लीना के साथ अपने विवाह की फोटो अपने माता-पिता को  भेज कर लिखा थाउन्होंने मन्दिर में पूर्ण भारतीय वैदिक विधि से विवाह किया हैअब भावी जीवन के लिए माता-पिता के आशीर्वाद की प्रार्थना है. क्या वे उनका आशीर्वाद लेने भारत के अपने घर आ सकते हैं?        
 नए जीवन में खुशियों के फूल खिल गए थे. दोनों ने एक साथ शोधोपाधि (पीएच डी) प्राप्त की थी. उनके शोध-कार्य को बहुत प्रशंसा मिली थी. कुछ ही दिनों में दोनों को अपने-अपने विभाग में नियुक्ति की सूचना ने उनकी खुशियां दुगनी कर दीं. अब उनके जीवन में कोई अभाव नहीं था. दो कारेंटीवी ही नहीं हर संभावित सुख के साधन उपलब्ध थे. मोहन कभी –कभी यह सोच कर उदास हो जाताकाश उसके माता-पिता उनके साथ इस सुख का उपभोग कर पाते. लीना मोहन की मन:स्थिति समझती थी,उसके अभिभावक नहीं थेकाश उसे मोहन में माता-पिता का स्नेह मिल पाता. अक्सर दोनों अपने पुराने दिनों की याद करते उन्होंने ये कब सोचा था कि अपार्टमेन्ट शेयर करने से उनको जीवन भर का साथ मिलेगा.
दिन महीने और वर्ष बीत रहे थे. अब राहुल छह वर्ष का समझदार और मेधावी बालक बन चुका था. लीना और मोहन ने निर्णय लिया था कि वे उसे भारतीय संस्कृति और भाषा से पूर्णत: परिचित कराएंगे. शायद इसी तरह से मोहन अपने पिता के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करना चाहता था. नन्हा राहुल जब अपनी मीठी बोली में गायत्री मन्त्र का पाठ करता तो लोग मुग्ध रह जाते. घर में वे राहुल के साथ हिंदी में ही बात करतेअपने स्कूल और बाहर राहुल अंग्रेज़ी में बात करता. मोहन राहुल को उसके बाबा-दादी के विषय में बताता. वह राहुल  के साथ पूजा करतालीना भी उनका साथ देती.
पिछले कुछ दिनों से मोहन कुछ उदास और गंभीर रहने लगा था. कभी- कभी उसे देर रात तक कुछ लिखते देख लीना के पूछने पर वह कहता कि वह एक पेपर तैयार कर रहा है. अचानक एक रात सीने के भयंकर दर्द के साथ मोहन को अस्पताल ले जाया गया था. मोहन को गंभीर हार्ट अटैक पड़ा था. अंत: उसका दिल और नहीं झेल सका. अस्पताल जाने के पहले मोहन ने अपने पिता के नाम एक बंद लिफाफा लीना को दे कर कहा था,
“अगर मुझे कुछ हो जाए तो इस पत्र और राहुल के साथ मेरे पिताजी के पास जाना. मै जानता हूँतुम मेरी खुशी के लिए कोई भी त्याग कर सकती होअगर मेरे माता-पिता राहुल को अपने पास रखना चाहें तो मेरी खुशी के लिए राहुल को उनके पास छोड़ देना. मेरे कारण उन्होंने जीवन में अकेलेपन का जो अभाव झेला हैराहुल उस की क्षति- पूर्ति कर देगा. बोलो ऐसा कर सकोगी?”
राम शरण जी को मोहन की मृत्यु की सूचना मोहन के मित्रो द्वारा फोन पर दे दी गई थी. राम शरण जी के एक मित्र को मोहन का लिखा पत्र भी फैक्स भी करा दिया गया था. इस संसार से जाने के पहले मोहन वो सारी व्यवस्था कर गया था जिससे लीना को कोई असुविधा ना हो.अपने पत्र में मोहन ने अपना दिल खोल कर रख दिया था. पिछले आठ वर्षों का माता-पता से अलगाव की पीड़ाअपना कर्तव्य पालन ना कर पाने का असहनीय दुःखबचपन की मीठी यादें और माता-पिता का अतुलनीय प्यार सब शब्दों में साकार कर दिया था. क्षमा मांगते हुए राहुल को अपनाने की विनती की थी. उसे यह विश्वास नहीं था कि वे लीना को अपनाएंगेपर लीना उसकी पत्नी हैयदि उसे एक बार अपनी पुत्र वधू पुकार सकें तो उसे प्रसन्नता होगी. लीना उसकी सच्चे अर्थों में सहधर्मिणी है. उसे विश्वास हैअपने दिवंगत पुत्र की अंतिम इच्छा अवश्य पूरी करेंगे.
मोहन की अस्थियाँ संगम में विसर्जित करते हुए मोहन और सावित्री रो पड़े,  राम शरण जी की गोद में बैठा राहुल उन्हें विस्मय से देख रहा था. पंडित जी के मन्त्रों के साथ लीना को भी मन्त्र बोलते देख मोहन के माता-पिता विस्मित थे. मोहन सत्य कहता थालीना तो सच में भारतीय संस्कृति की पोषिका थी. काशयह सत्य वे पहले ही मान लेते. पूजा समाप्त होने के बाद लीना संगम के पानी में उतर कर स्नान कर के भीगे वस्त्रों में ही नाव में आ गई. वह जानती थी उस अंतिम कार्य के बाद शुद्धता के लिए गंगा- जल में स्नान आवश्यक था.

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